मंगलवार, 13 सितंबर 2016

स्मृति-स्मृति द्वारा फेशबुक में प्रस्तुत

तुम्हारी स्मृति ही है आधार।
वही इस जीवन का सुख-सार॥
नहीं पलभर विस्मृति को स्थान।
नहीं है कभी अन्यका भान॥
देह, मन, मति, इन्द्रिय, सब अंग।
रँगे हैं सससभी उसी के रंग॥
रहे यह देह कहीं पर कभी।
सने हैं मधुर स्मृति से सभी॥
तुम्हीं, बस, केवल प्राणाराम।
तुम्हीं मेरे जीवन-विश्राम॥
तुम्हीं से एकमात्र सबन्ध।
कट गये सभी दूसरे बन्ध॥
हु‌आ जीवन सुखमय, स्वच्छन्द।
प्राप्तकर तुम्हें, चिन्मयानन्द॥

श्री हनुमान चालीसा से ....33-40






श्री हनुमान चालीसा से ....25-32





श्री हनुमान चालीसा से ....16-24






श्री हनुमान चालीसा से ....9-16





श्री हनुमान चालीसा से .....1-8


श्री कृष्ण :1-5