सखी
री, मुरली भई पटरानी ।
अधर
सदा सुख करती स्याम कें,
सुधा पियति
इतरानी ।।1।।
मोहे
पसु, पंछी द्रुम
बेली ,
जमुना उलटि
बहानी ।
सुर नर
मुनि बस भए नाद कें ,
सबै
बस्य मन, ध्यानी ।।2।।
तिहु भुवन
में चली बड़ाई ,
अस्तुति मुख मुख गानी ।
सुर स्याम की अब अरधंगिनि ,
रही . झार .लापटानी ।।3।।
---सूरदास