शनिवार, 5 मार्च 2016

सूरदास--माई, मुरली बजाई किन री ।



माई, मुरली बजाई किन री ।
नंद महर को कुँवर कन्हैयासूरदास,
रैनि न जानै दिन री ।।
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माई, मुरली बजाई किन री।
मोहे खग ,मृग औ पशु पालक ,
मोहे बन        उपवन री ।
चलत न नीर , थकित भई जमुना ,
गऊ न           चारै तृन री ।।2।।
                            सूरदास
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·       माई, मुरली बजाई किन री ।
·       मुरलि बजाई ,सब मन भाई,
·       स्र्वन सुन्यौ जिन जिन री ।
·       सूरदास सकल जन मोहे ,
·       मुरली की धुनि सुनि री ।।3।।
·            PKJ

सूरदास--जब जब मुरली कान्ह बजावत ।

जब जब मुरली कान्ह बजावत ।
                         ---सूरदास

जब जब मुरली कान्ह बजावत ।
तब तब  राधा नाम  उचारत,
बारंबार            रिझावत ।।1।।

तुम रमनी ,   वे रमन तुम्हारे ,
वैसेहिं     मोही   जनावत ।
मुरली भई सौति जो  माई ,
तेरी टहल      करावत ।।2।।

वह दासी , तुम्ह अरधंगिनि ,
यह  मेरे मन   आवत ।
सूर प्रगट ताही सौं कही कही
तुमको स्याम बुलावत ।।3।।




सूरदास-मुरलिया एकै बात कही



मुरलिया एकै बात कही ।
भाग आपनौ अपने माथें ,
मानी यह मनहिं   सही ।।1।।
                   -सूरदास
           
मुरलिया एकै बात कही ।
हम तें बहुत तपस्या नाहीं,
विरह जारी वह      नाहीं ।
कहा निमिष करि प्रेम सुलाकी ,
देखो गुनि जिय      माही ।।2।।
                    -सूरदास  
PKJ
मुरलिया एकै बात कही ।
बात कहति कछु नींदति नाहीं ,
भाग   बड़े       हैं     वाके ।
सूरदास प्रभु चतुर सिरोमनि
ब्सय   भए  हैं    जाके ।।3।।
                    सूरदास
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सूरदास--मुरलिया अपनौ काज कियो ।

मुरलिया अपनौ काज कियो ।
आपुन लूटति अधर सुधा हरि,
हम कौं दूरी कियौ ।। 1 ।।
                    - सूरदास
PKJ

मुरलिया अपनौ काज कियो ।
नन्द नन्दन बस भए बचन सुनि,
तिन्हैं  बिमोह कियो ।
स्थावर चर , जंगम जड़ कीन्हे,
मदन बिमोह कियौ ।।2 ।।
                    - सूरदास
PKJ

मुरलिया अपनौ काज कियो ।
जाकी दसा , रही नहीं वाही,
सबहि चकित कियौ।
सूरदास प्रभु चतुर सिरोमानि ,
तीन कौं हाथ लिऔ ।।3।।
                   - सूरदास
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शुक्रवार, 4 मार्च 2016

श्री हनुमान चालीसा-6


श्री  हनुमान  चालीसा 
6.   शंकर-सुवन केशरी-नन्दन ।
    
तेज प्रताप महा जग-वंदन ॥

श्री हनुमान चालीसा-5

श्री हनुमान चालीसा

5.   हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।


श्री हनुमान चालीसा-4

श्री हनुमान चालीसा

4.   कंचन बरण बिराज सुबेशा ।
     कानन कुंडल कुंचित केशा ॥